
वसंत ऋतू
सरोजिनी सिंह
आई वसंत ऋतु प्यारी
आई वसंत ऋतु मतवाली
धानी रंग की ओढ़ चुनरिया
लहराती थी बाली
पीली सरसों ने खिल कर
पहनाई पीली साड़ी
पीले रंग में सजी है धरती
जैसे दुल्हन प्यारी
अनगिन रंगों के फूलों से
भरी मटर की क्यारी
बहती है फागुनी बयार
झूमें डाली डाली
रंग बिरंगे फूल खिले हैं
महके है हर डाली
आमों में मंजरियां लग गईं
फैली है खुशहाली
मनभावन सुगंध फैली है
हुलसित है हर प्राणी
रंग हजारों बिखरे फिज़ा में
अद्भुत छटा निराली
तितली उड़ती फूल फूल पर
भंवरा मंडराए कली कली
प्यारी कोयल गाए सरगम
फागुन के गीत गूंजे गली गली
ढोलक मृदंग मजीरे बज रहे
मस्तानों की टोली
अबीर और गुलाल उड़ाते
नाचे है हमजोली
टेसू के रंगों में रंगकर
मन हुआ वासंती
मां सरस्वती के वंदन से
परिवेश हुआ आनंदित
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काश रुक जाए ये तबाहियों के मंजर
- प्रीति अरोड़ा
है बदहवास मौसम
जहर घुली हवाएं
हुई सांस सांस बोझिल
मौत की है सांय सांय
ये जंग किस तरह रुकेगा
इसमें उलझा है जहन
धुआ धुआ हुई फिजा
धुआ धुआ मन
किसी दिल की आवाज
अब कोई नहीं सुनता
भीगी नजरे ने जो कहा
नहीं किसी को दिखता
सहमे से रास्ते हैं
डरा डरा है मन।
धुआं धुआं हुई फिजा
धुआ धुआ है मन ।
इंसानियत के सीने पर
क्यों दागी है गोलियां
दाग है दिलों पर अब
खून की है होलियाँ
धड़कते हैं गोले
और बरसते हैं बम
धुआं धुआं हुई फिजा
धुआं धुआं है मन।
हंसती थी यहां जिंदगी
था रौनकों का गुलशन
अब हर तरफ धमाके
है दहशतों के सायरन
शोर में है एक खामोशी
और घुट रहा है दम
धुआं धुआं हुई फिजा
धुआं धुआं है मन।
एक जंग दो मुल्कों में है
एक द्वंद मन के अंदर
कहीं द्वेष दिलों पर हावी
कहीं अनुबंध मन के अंदर
काश रुक जाएं ये
तबाहियों के मंजर
काश रूक जाए ये
तबाहियों के मंजर।

होरी है बरजोरी
- पूजाश्री
होरी है जो बरजोरी
आज रंग गई गोरी
गोकुल गांव का छोरा
बरसाने की छोरी।
लाया हाथ में रुमाल
चली मतवाली चाल।
सब ग्वाल बाल साथ,
थी रुमाल में गुलाल।
महके फूलों की गुलाल
महक उठी चौपाल
बाजे ढोल और ढपाल
मुख हुआ लाल लाल।
आई ग्वालिनों की टोली
फिर हुई जोरा जोरी
किया रंगों ने धमाल
भीगी चुनरिया कोरी।
आई राधे गोपी संग
बजने लगे मृदंग चंग
ऐसा हुआ फिर हुड़दंग
श्याम हुए राधे संग।
श्याम करे चित चोरी
राधे चांद की चकोरी
चढ़ गया प्रेम रंग
बिना किए बरजोरी।
उठो, जागो और तब तक रुको नही जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये ।
-स्वामी विवेकानन्द
जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो–उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो–वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है।