
व्यक्तित्व: छत्रपति शिवाजी महाराज

प्रवासी चेतना मुंबई
5 मार्च 2023
छत्रपति शिवाजी महाराज
शौर्यपूर्ण योद्धा, लोकप्रिय शासक और बेहतरीन रणनीतिकार
भारत में ऐसे कई वीर हुए हैं जिन्होंने अपनी असाधारण वीरता, त्याग और बलिदान से भारत भूमि को धन्य किया है। उनमें शिवाजी का नाम सर्वोपरि है। छत्रपति शिवाजी महाराज के स्मरण मात्र से हम सभी भारतवासियों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। शिवाजी मतलब शौर्यपूर्ण योद्धा, लोकप्रिय शासक और एक बेहतरीन रणनीतिकार जो समाज कल्याण और धार्मिक मान्यताओं में भी गहरी रूचि रखते थे। सैन्य आधुनिकीकरण, 18वीं शताब्दी में नौसेना का निर्माण, फारसी की जगह मराठी और संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाना और विदेशी आक्रमणकारियों को देश से खदेड़ने का उनका प्रयास भारतवासी कभी नहीं भूल सकेंगे। भारत हमेशा उनके बलिदान का ऋणी रहेगा…...
जन्म : 19 फरवरी, 1630
मृत्यु : 3 अप्रैल, 1680
शिवाजी महाराज ने 1674 में अपने राज्याभिषेक के समय जिस तरह हिंदवी स्वराज्य के उद्घोष के साथ विदेशी आक्रमणकारियों को खदेड़ा, सालों साल तक भारत के अंदर स्वराज, स्वधर्म और स्वभाषा तीनों की एक मजबूत नींव डालने का काम किया। उसी नींव पर हमारा देश एक मजबूत इमारत के तौर पर खड़ा है। एक सामान्य इंसान से छत्रपति की उपाधि हासिल करने तक शिवाजी महाराज ने कई युद्ध अपने साहस और बुद्धि से जीते जिसमें महज
18-19 वर्ष की आयु में पूना-रायगढ़, कोंडाना और तोरणा के पास कई पहाड़ी किलों पर कब्जा करना शामिल है। दुर्ग बचाने के लिए संधि, विरोधी पर जीत दर्ज करने के लिए पहाड़ियों के बीच बुलाना, पुरंदर का किला बचाने के लिए महाराजा जयसिंह से संधि और मुगल सम्राट औरंगजेब की कैद से भाग निकलना उनकी चतुराई को दर्शाता है।
शाहजी भोंसले और जीजाबाई (राजमाता जिजाऊ) के घर शिवनेरी दुर्ग में शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी, 1630 को हुआ था। साहसी शिवाजी ने बचपन में ही राजनीति एवं युद्ध कौशल सीखा। शिवाजी के चरित्र पर माता-पिता का प्रभाव था तो उनके गुरु स्वामी रामदास ने उनमें निर्भीकता, अन्याय से जूझने का सामर्थ्य और संगठनात्मक योग्यता का विकास किया। ‘राष्ट्र सर्वप्रथम है, फिर गुरु, फिर माता-पिता व परिवार और फिर परमेश्वर का स्थान है’ को आत्मसात करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज ने आदर देने में मां जीजाबाई और समर्थ गुरु रामदास में फर्क नहीं किया क्योंकि वह नारी में सबसे महान अधिकार मातृ स्वरूप को मानते थे। शिवाजी हिंदू धर्म के उत्थान के साथ सभी मतों-पंथों के प्रति आदर और सद्भावना रखते थे।
मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले शिवाजी महाराज का मूल नाम शिवाजी भोंसले था लेकिन उन्होंने प्रशासन और नेतृत्व कौशल के कारण राज्याभिषेक के समय ही ‘छत्रपति’ यानि ‘क्षत्रियों के प्रमुख(पति)’ की उपाधि अर्जित की। शिवाजी महाराज, भारत के इतिहास के शिखर-पुरुष तो हैं ही, साथ ही भारत का वर्तमान भूगोल भी उनकी अमर गाथा से प्रभावित रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं, “यह हमारे अतीत का, हमारे वर्तमान का और हमारे भविष्य का एक बहुत बड़ा प्रश्न है कि अगर शिवाजी महाराज न होते तो क्या होता? छत्रपति शिवाजी महाराज के बिना भारत के स्वरूप की, भारत के गौरव की कल्पना भी मुश्किल है। जो भूमिका उस कालखंड में छत्रपति शिवाजी की थी वही भूमिका उनके बाद उनकी प्रेरणाओं और उनकी गाथाओं ने निरंतर निभाई है।”
उन्होंने युद्ध विद्या में अनेक नए प्रयोग किए और छापामार युद्ध की नई शैली को विकसित किया। शिवाजी ने अपनी अनुशासित सेना और सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की मदद से एक योग्य और प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। शिवाजी ने विजय और राज्य विस्तार के तमाम व्यवस्थाओं के बावजूद इस बात का ध्यान रखा कि उनका शासन जनता के लिए प्रिय और जनहितकारी हो। इसके लिए उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक प्रबंध किए थे। शिवाजी का भारतीय राज्य धर्म निरपेक्ष था।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की नींव रखने के साथ विस्तार शुरू किया तो न सिर्फ कई युद्ध जीते बल्कि अपने चातुर्य से मुगल सम्राट से अपना साम्राज्य भी बचाया। कई बार मुगलों की सेना को मात दी। शिवाजी महाराज ने धर्म, राष्ट्रीयता, न्याय और जनकल्याण के स्तंभों पर सुशासन की स्थापना कर भारतीय वसुंधरा को गौरवान्वित किया। शिवाजी ने अपनी राज्य व्यवस्था के लिए 8 मंत्री भी नियुक्त किये थे जिन्हें अष्ट प्रधान कहा जाता था। उसमें पेशवा का पद सबसे महत्वपूर्ण होता था। शिवाजी महाराज की 3 अप्रैल, 1680 को मृत्यु हो गई लेकिन भारत की आजादी की लड़ाई में कई क्रांतिकारियों ने छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवनचरित्र से प्रेरणा लेकर भारत की स्वतंत्रता के लिये अपना तन, मन, धन सब कुछ न्यौछावर कर दिया।
शिवाजी महाराज का ‘हिंदवी स्वराज’ सुशासन का,
पिछड़ों-वंचितों के प्रति न्याय का और अत्याचार के खिलाफ हुंकार का अप्रतिम उदाहरण है। हिंदवी स्वराज्य अर्थात आदर्श शासन और पूर्ण भारतीय स्वराज। भारतवर्ष किसी भी दल या दलों के शासन में रहा हो, मूल विचारधारा हमेशा देश को हर प्रकार के विदेशी सैन्य व राजनैतिक प्रभाव से मुक्त रखने की रही है। माना जाता है कि पहली बार ‘हिंदवी स्वराज्य’ शब्द का प्रयोग शिवाजी महाराज ने ही एक पत्र में किया था।
वीर शिवाजी का प्रबंधन, देश की सामुद्रिक शक्ति का इस्तेमाल, अपने सामर्थ्य से नौसेना का निर्माण, जल प्रबंधन ऐसे कई विषय आज भी अनुकरणीय हैं। 2 सितंबर, 2022 को शिवाजी महाराज की उसी प्रेरणा से गुलामी और उपनिवेशवाद के निशान को हटाकर भारतीय नौसेना को एक नया ध्वज मिला, जो पूर्णत: भारतीयता और नौसेना के सामर्थ्य को दर्शाता है। अभी तक भारतीय नौसेना के ध्वज पर जॉर्ज क्रॉस का निशान था। नौसेना के ध्वज में शिवाजी महाराज की राजमुद्रा का अंश हर भारतीय को अपनी समृद्ध संस्कृति पर गर्व की अनुभूति करवाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्रपति शिवाजी महाराज को उनकी जयंती पर याद करते हुए कहा था, “छत्रपति शिवाजी महाराज का उत्कृष्ट नेतृत्व और समाज कल्याण पर जोर पीढ़ियों से लोगों को प्रेरणा देता रहा है। जब सच्चाई और न्याय के मूल्यों के लिए खड़े होने की बात आयी तो वह हमेशा अडिग रहे। हम उनकी दृष्टि को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।” n