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वसंत का पदचाप

भगवती मित्तल

5 मार्च 2023

तो मैं क्यों खिड़कियाँ बंद कर बैठू
क्यों न उठकर रवि पान करूं

जब जाड़ों की सर्द रातें शीत से कांपी हो

सुबह आँगन उजली धूप खिली हो

मूंगफली और रेवड़ियों में ठनी हो

गाजर मूली प्रेम से गले मिले हो

तो मैं क्यों खिड़कियाँ बंद कर बैठू

क्यों न उठकर रवि पान करूं

झड़ते पातों की धुन पर वासंती स्वर में

क्यों ना कोई नयी रागिनी छोडूं

क्यों ना उठकर रविपान करूं

सूर्यदेव चले उत्तरायण हो

शिशिर का अब अन्तकाल हो

अंकुर फूटने के आसार हों

वसंत की बजती पदचाप हो

क्यों ना मै सारे बंधन तोड़ दूं

क्यों ना उठकर श्रृंगार करूं

प्रकृति के मधुमास पर रंगों की प्रीत से

क्यों ना हर्ष उल्लास घलवाऊँ

दिल में मचलते अरमान हो

ह्रदय में भरे उदगार हो

भावनाओं के बहते ज्वार हो

कल्पना की ऊंची उड़ान हो

क्यों ना शब्दों की मनुहार करूं

ऐसा कोई शिला लेख गढ़

अमिट चिन्ह जग में छोड़

जब बसंत आता है तो

प्रकृति में निखार आता है

जब संत आते हैं तो

संस्कृति में निखार आता है

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अल्बर्ट आइन्स्टीन 

साहित्य समाजहम भारतीयों के आभारी है,
जिन्होने हमें गिनना सिखाया
जिसके बिना किसी भी तरह की
वैज्ञानिक खोज सम्भव ही नहीं थी.

© 2023 by Prawasi Chetana 

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