
विशेष
भारत विकास परिषद्
भारत विकास परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुरेश जैन ने किया मीडिया का सम्मान मुंबई प्रवास के दौरान भारत विकास परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुरेश जैन ने भारत विकास परिषद के उद्देश्य और मह्त्व के बारे मे आज मीडिया से मुम्बई मे चर्चा की। इस चर्चा मे विभिन्न मीडिया हाउस से आए गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत सम्मान किया गया। इस अवसर पर क्षेत्रीय सचिव एल आर जाजू, क्षेत्रीय संयुक्त महासचिव रवि प्रकाश, मुम्बई प्रांत के अतिरिक्त संगठन सचिव मनोज वर्मा, क्षेत्रीय मीडिया प्रमुख नरेंद्र मौर्य , चिंतक- वैज्ञानिक प्रेम नारायन अग्रवाल , सूर्यकान्त पांडेय, कार्यकर्ता योगेन्द्र चौधरी उपस्थित रहे ।

जे जे टी यूनिवर्सिटी
श्री जेजेटी विश्वविद्यालय का 11वा दीक्षांत समारोह जेजेटी ऑडिटोरियम में संपन्न हुआ। इस समारोह के मुख्य अतिथि उड़ीसा के राज्यपाल महामहिम श्री गणेशी लाल थे। उन्होंने अपने उद्बोधन में उपस्थित शोधार्थियों को कहा कि पुरुषार्थ के द्वारा ही राष्ट्र का निर्माण संभव है। उन्होंने कहा कि संपूर्ण ब्रह्मांड प्रेम का ही विस्तृत रूप है। इसलिए प्रत्येक शोधार्थी को समदृष्टि रखते हुए प्रेम से राष्ट्र की सेवा करनी चाहिए। मुख्य वक्ता महामंडलेश्वर श्रीअर्जुन दास जी महाराज थे। उन्हें इस समारोह में यूनिवर्सिटी की ओर से मानद डी.लिट की डिग्री प्रदान की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता जेजेटी यूनिवर्सिटी के चेयरपर्सन डॉ. विनोद टीबड़ेवाला ने किया। उन्होंने सभी उपस्थित गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया तथा सभी शोधार्थियों को शुभकामनाएं दी और कहा कि जेजेटी विश्वविद्यालय को शिक्षा के क्षेत्र में विश्व स्तर पर अंकित कराया जाएगा। इस समारोह में सभी का स्वागत प्रेसिडेंट बालकिशन टीबड़ेवाला ने किया। विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ राजेश शर्मा नैक चेयरमैन, राजस्थान सरकार भी उपस्थित थे। इस अवसर पर डॉ दीनदयाल मुरारका, रामावतार अग्रवाल, डॉ एस के यादव, डॉ दीनानाथ केडिया, डॉ वनमाली चतुर्वेदी, उमा देवी टीबड़ेवाला, उमा विशाल टीबड़ेवाला, रजिस्ट्रार डॉ मधु गुप्ता, डॉ अंजू सिंह, पीआरओ रामनिवास सोनी, डॉ अमन गुप्ता, डॉ अजीत कासवा, सहित गणमान्य अतिथि उपस्थित थे। कार्यक्रम का कुशल संचालन अरुण पांडे एवं डॉक्टर अनुश्री ने किया।

सुहासिनी गांगुली
भारत की आजादी के लिए लगा दिया अपना संपूर्ण जीवन जन्म : 3 फरवरी 1909, मृत्यु : 23 मार्च 1965 भारतवर्ष की स्वतंत्रता का सपना देखने और इसके लिए अपना संपूर्ण जीवन लगा देने वाली महान स्वतंत्रता सेनानी सुहासिनी गांगुली का जन्म 3 फरवरी 1909 को अविभाजित बंगाल के खुलना जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम अविनाशचंद्र गांगुली और माता का नाम सरला सुंदरा देवी था। उन्होंने 1924 में ढाका ईडन स्कूल से अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। बाद में वह मूक और बधिर बच्चों के एक विशेष विद्यालय में पढ़ाने के लिए कलकत्ता चली गईं। माना जाता है कि वहां रहने के दौरान वह प्रीतिलता वाड्डेदार और कमला दास गुप्ता के संपर्क में आईं जिन्होंने उन्हें जुगांतर क्रांतिकारी समूह का हिस्सा बनने के लिए प्रोत्साहित किया। जुगांतर समूह में शामिल होने के बाद उन्होंने ‘छात्री संघ’ नामक एक संगठन के लिए भी काम करना शुरू कर दिया। इसी दौरान समान विचारधारा और भारत की स्वतंत्रता की इच्छा रखने वाले लोगों से उनका परिचय हुआ। इस बीच सुहासिनी गांगुली की सक्रियता के कारण अंग्रेज उन पर कड़ी नजर रखने लगे थे। ऐसे में उनके लिए कलकत्ता से बाहर काम करना बहुत मुश्किल हो गया था। चटगांव विद्रोह के बाद जुगांतर पार्टी के कई सदस्यों को छिपने के लिए मजबूर होना पड़ा। ऐसे में सुहासिनी गांगुली को भी गिरफ्तारी के डर से चंदननगर में शरण लेनी पड़ी, जो फ्रांसीसियों के नियंत्रण में था। वहां वह क्रांतिकारी शशिधर आचार्य की छद्म धर्मपत्नी के तौर पर रहने लगीं। वहां वह एक स्कूल में नौकरी करने लगी और सभी क्रांतिकारियों के बीच सुहासिनी दीदी के तौर पर पहचानी जाने लगी। हालांकि, अंग्रेजों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और चंदननगर के उनके घर पर ब्रिटिश पुलिस अधिकारियों की एक टीम ने छापा मारा। इसके बाद, सुहासिनी गांगुली, शशिधर आचार्य और गणेश घोष को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें खड़गपुर के पास हिजली कारावास शिविर में छह साल तक रखा गया। आगे चलकर यही हिजली डिटेंशन कैंप खड़गपुर आईआईटी का कैंपस बना। हिजली से अपनी रिहाई के बाद, गांगुली ने देश की आजादी के लिए अपना संघर्ष जारी रखा। वह आधिकारिक तौर पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ जुड़ गईं और उन्होंने पार्टी के कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू कर दिया। भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले एक क्रांतिकारी हेमंत तराफदार को आश्रय देने की वजह से सुहासिनी गांगुली को फिर से जेल में डाल दिया गया। जेल से रिहा होने के बाद वह धनबाद के एक आश्रम में रहने लगी और आजादी के बाद अपना सारा जीवन सामाजिक, आध्यात्मिक कार्यों के लिए समर्पित कर दिया। 23 मार्च 1965 को एक सड़क दुर्घटना में सुहासिनी गांगुली का निधन हो गया।

दामोदर स्वरूप सेठ
बांस बरेली के सरदार थे स्वतंत्रता सेनानी जन्म : 11 फरवरी 1901, मृत्यु 1965 प्रसिद्ध क्रांतिकारी एवं देशभक्त दामोदर स्वरूप सेठ का जन्म उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में 11 फरवरी 1901 को हुआ था। देश को आजाद कराने के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया और आजादी की लड़ाई में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। वह शुरू से क्रांतिकारी विचार के थे और जब वह पढ़ाई के लिए इलाहाबाद गए तो वहीं क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। पढ़ाई के बाद वह चंद्रशेखर आजाद की हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी से जुड़ गए। दामोदर स्वरूप सेठ के प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद भी उनका बहुत सम्मान करते थे। माना जाता है कि बनारस षड्यंत्र केस और काकोरी षड्यंत्र मामले में भी उनका नाम आया था और अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार भी किया था। हालांकि, सरकार उन पर अभियोग सिद्ध नहीं कर पाई और ऐसे में उन्हें रिहा कर दिया गया। बाद में वह कांग्रेस पार्टी से जुड़ गए। कहा जाता है कि सेठ दामोदर स्वरूप छरहरे बदन के थे। ऐसे में अंग्रेज सरकार के खिलाफ पर्चे चिपकाने का काम इन्हें ही मिलता था। अंग्रेज उन्हें पकड़ने आते तो दुबले-पतले होने की वजह से बचकर भाग निकलते थे। दामोदर स्वरूप सेठ ने असहयोग आंदोलन में भी भाग लिया था और जेल गए थे। स्वतंत्रता सेनानियों के सिरमौर माने जाने वाले क्रांतिकारी सेठ दामोदर स्वरूप को लोग बांस बरेली के सरदार के नाम से भी जानते हैं। एक समय था जब बरेली में नारा गूंजता था, “बांस बरेली का सरदार, सेठ दामोदर जिंदाबाद।” दामोदर स्वरूप सेठ संयुक्त प्रांत से भारतीय संविधान निर्मात्री परिषद के सदस्य थे। सभा में वह काफी मुखर वक्ता थे। माना जाता है कि सदस्य के रूप में उनका योगदान अहम था और उन्होंने संविधान के प्रारूप पर बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर को कई विषयों पर सुझाव दिया था जिसे स्वीकार भी किया गया। आजादी के बाद भी वह निरंतर देश सेवा में लगे रहे और देश की उन्नति एवं विकास के लिए ईमानदारी से कार्य करते रहे। साल 1965 में उनका निधन हो गया।
